श्री आदिनाथ जन्म भूमि
जब तृतीय काल में चौरासी लाख वर्ष पूर्व तीन वर्ष साड़े आठ महीने प्रमाण काल शेष रह गया था तब श्री आदिनाथ जी का जन्म हुआ था। भगवान श्री आदिनाथ जी के अन्य नाम भी हैं जैसे- भगवान श्री वृषभनाथ जी, भगवान श्री ऋषभनाथ जी, भगवान श्री पुरूदेव आदि। इनमें सबसे ज्यादा प्रचलित नाम भगवान श्री आदिनाथ है। भगवान श्री आदिनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे। भगवान का वर्ण तपाये हुये स्वर्ण के समान था। भगवान आदिनाथ के वैराग्य का कारण नीलाज्जना नर्तृकी का नृत्य करते हुए भरण को प्राप्त होना था।
श्री आदिनाथ भगवान की दीक्षा चैत कृष्ण नवमीं अपरान्ह समय उत्तराषाढा नक्षत्र में हुई थी। भगवान ने दीक्षा के पश्चात् एक हजार वर्ष तक तप किया। भगवान श्री आदिनाथ जी का प्रथम आहार श्रेयांश राजा द्वारा इक्षुरस आहार द्वारा हस्तिनापुर नगर में हुआ था। प्रथम आहार एक वर्ष उन्तालीस दिन पश्चात् हुआ था। भगवान श्री आदिनाथ को पुरिमतालपुर नगर के शकटास्य नामक उद्यान में वटवृक्ष के नीचे फाल्गुन वदी ग्यारस को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान के समवशरण में चौरासी गणधर विराजते थे। इनमें प्रमुख गणधर श्री ऋषभ सेन जी थे।
श्री भगवान आदिनाथ स्वामी ने विदेह क्षेत्र की व्यवस्था के अनुसार क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इन तीन वर्णो का प्रतिपादन किया था। एवं प्रजा को असिकर्म (शस्त्र विद्या), मसि कर्म (लेखन विद्या, तथा कृषि कर्म, वाणिज्य, शिल्प, विद्या आदि षटकर्म सिखाया था।
श्री आदिनाथ भगवान तृतीय काल में कैलाश पर्वत से माघ वदी चैदह पूर्वान्ह काल में मोक्ष गये थे। उस समय चतुर्थ काल प्रारंभ होने में तीन वर्ष आठ माह और पन्द्रह दिन शेष रह गये थे।
श्री अजीतनाथ जन्म भूमि
भगवान श्री आदिनाथ के मोक्ष जाने के पचास लाख करोड़ सागर समय बाद भगवान श्री अजित नाथ का जन्म हुआ था । भगवान श्री अजितनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे । भगवान को पौष शुक्ल ग्यारस को अयोध्या नगरी के सेहतुल वन में सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान के समवशरण में नब्बे गणधर विराजते थे । इनमें प्रमुख गणधर श्री केसरी सेन थे ।
श्री अजितनाथ भगवान के समय ढाई द्वीप में सबसे अधिक एक सौ सत्तर तीर्थकर विद्यमान थे । भगवान श्री अजितनाथ चैत्र शुक्ल पंचमी को पूर्वान्हकाल में श्री सम्मेद शिखर के श्री सिद्धवर कूट से मोक्ष मोक्ष को प्राप्त हुए थे ।
श्री अभिनन्दन नाथ जन्म भूमि
श्री संभवनाथ भगवान के मोक्ष जाने के नौ लाख करोड़ सागर समय बाद श्री अभिनंदन नाथ भगवान का जन्म हुआ था । भगवान श्री अभिनंदन नाथ इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर स्वर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य गंधर्वनगर के नाश को देखकर हुआ था। भगवान को पौष शुक्ला चतुर्दशी को अपरान्ह काल में अयोध्या नगर के उग्रवन में सरल वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।
भगवान के समवशरण में एक सौ तीन गणधर विराजते थे एवं प्रमुख गणधर श्री वज्रचमर (वज्रनाभि) थे। भगवान श्री अभिनंदन नाथ वैशाख शुक्ल छट को पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री आनंद कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे।
श्री सुमतिनाथ जन्म भूमि
भगवान श्री सुमतिनाथ इक्ष्वाकु वंश के थे, एवं भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था । भगवान को वैराग्य, जाति स्मरण को देखकर हुआ था । श्री सुमतिनाथ भगवान के समवशरण में एक सौ सोलह गणधर विराजते थे । इनमें प्रमुख गणधर श्री वज्रसेन (अमर वज्र) थे । श्री सुमतिनाथ भगवान चैत्र शुक्ल ग्यारस को पूर्वान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री अविचल कूट से मोक्ष प्राप्त हुए थे ।
श्री अनंतनाथ जन्म भूमि
श्री अनंतनाथ भगवान की आयु तीस लाख वर्ष की थी एवं उनका कुमार काल सात लाख हजार वर्ष का था। श्री अनंतनाथ भगवान इक्ष्वाकु वंश के थे एवं भगवान का शरीर सुवर्ण वर्ण का था। भगवान को वैराग्य बिजली गिरते हुए देखने से हुआ था । श्री अनंतनाथ भगवान को चैत्र कृष्णा अमावश को अपरान्ह काल में अयोध्या नगर के सहेतुक वन में पीपल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । भगवान श्री अनंतनाथ का केवली काल दो वर्ष कम साड़े सात लाख वर्ष का था । श्री जी के समवशरण में पचास गणधर विराजते थे इनमें प्रमुख गणधर श्री जयार्य (अरिष्ट) जी थे । भगवान श्री अनंनत नाथ चैत्र कृष्णा अमावस्या को अपरान्ह काल में श्री सम्मेद शिखर के श्री स्वयं भू कूट से मोक्ष को प्राप्त हुए थे।